शूर्पणखा ने लिया रावण से बदला (लक्ष्मण शूर्पणखा का सम्बन्ध )

 शूर्पणखा ने लिया रावण से बदला (लक्ष्मण शूर्पणखा का सम्बन्ध )


रामायण के मुताबिक शूर्पणखा रावण की सग्गी बहिन थी | शूर्पणखा के पति का नाम  "विद्युतजिव्ह" था |विद्युतजिव्ह कालकेय नाम के राजा का सेना पति था |   बार की बात है जब रावण ने विश्व विजय के लिया निकला तो कालकेय के साथ उसका युद्ध हुआ तो शूर्पणखा के पति के श भी युद्ध हुआ| युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया | तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया की मेरे ही कारन तेरे समस्त कुल का नाश होगा | 

शूर्पणखा प्रतिशोध की भावना में जल रही थी |  कुछ समय बाद  शूर्पणखा को पता चला की भगवान विष्णु ने राम के रूप में धरती पर अवतार  लिया है  और वह चौदह साल के लिया वनवास भोग रहे है| और वह खर दूषण के राज्य पंचवटी में ही कुटिया बना कर रह रहे है | उस ने सिचा की यही सबसे अच्छ मौका है रावण दे बदला लेने के लिया | और वह पंचवटी की और वायु मार्ग से चल दी | वह पंचवटी के पास पहुंची और उसने देखा की एक सुन्दर पुरुष एक सुन्दर कुटिया के पास वृक्ष के निचे ध्यान मग्न था| उसके तेज को देख कर वह समझ गई की यही श्री राम है | फिर उसने एक सुन्दर स्त्री का रूप रखा कर निचे जमीन  पर उतरी ओर श्री राम के पास गई | जब वह रा
म के समीप पहंची तब लक्ष्मण जी जंगल से लकड़ी लेने गए थे | शूर्पणखा ने राम जी से मुस्कुरा कर बोली- 


तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी। यह सँजोग बिधि रचा बिचारी |

न तो तुम्हारे सामान कोई पुरुष है , न मेरे सामान कोई नारी और विधाता ने यह जोड़ा बहुत विचार कर रचा है| और आगे  बाला-


मम अनुरूप पुरुष जग माहीं। देखेउँ खोजि लोक तिहु नाहीं| 

तातें अब लगि रहिउँ कुमारी। मनु माना कछु तुम्हहि निहारी|| 

मेरे योग्य पुरुष जगत में नहीं है, मेने तीनो लोको में देख खोज लिया | इस लिया में अभी तक में कुवांरी हूँ  | तुम्हे देखकर कुछ मन मन है |  

शूर्पणखा बहुत चरण राक्षशी थी और दुष्ट हिरदे वाली थी इस लिए  लिखा है - सूपनखा रावन कै बहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी| 

अर्थात-शूर्पणखा नामक रावण की एक बहिन थी, जो नागिन के समान भयानक और दुष्ट हृदय की थी।

श्री राम जी शूर्पणखा के मन में क्या चल रहा सब समझ गई थे | सीता जी की और देख कर श्री राम ने कहा में एक पत्नी व्रत धरी पुरुष ही और वह मेरी पत्नी है इसलिए में तुम से विवाह नहीं कर सकता ( इसी बिच लक्ष्मण जी भी जंगल से लकड़ी लेकर आते है )  राम जी के ऐसे वचन सुन वह लक्ष्मण जी के पास गई और शादी का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मण जी ने कोमल वाणी में बोले - हे सुंदरी! सुन।  में तो उनका दास हूँ में श्री राम की सेव करता हूँ | आप उनसे ही याचना कीजिये | 

फिर वह श्री राम के पास गई श्री राम ने फिर लक्ष्मण के पास भेजा , लक्ष्मण ने राम जी के पास भेजा वह लोट कर राम जी के पास आई और क्रोध में भयंकर रूप किया तभी सीता जी भयभीत देखकर श्री राम ने लक्ष्मण की और इशारा किया | 

 लक्ष्मणजी ने बड़ी फुर्ती से तलबार निकली और सूर्पनखा के नाक और कान काट दिए | 

लक्ष्मण जी ने  सूर्पनखा के नाक - कान क्यों कांटे ?

 इसका भी एक कारण है | 

सूर्पनखा पूर्वजन्म में शेषनाग की पत्नी थी | एक बार शेषनाग तीनो लोको की यात्रा के लिय गए| उसी समय नागिन (सूर्पनखा ) मौका पाकर एक मटिया नाग के साथ सम्भोग कर रही थी | उसी समय राजा प्रतापभानु घूमते - घूमते शेष नाग जी के महल के पास से गुजर रहे थी तो उन्हें कुछ आवाजे सुनाई दी प्रताप भानु ने महल में देखा की शेषनाग की पत्नी और मठिया नाग सम्भोग कर रहे थे | प्रताप भानु ने उस नाग को बही मार दिया | और नागिन को  भी बहुत मारा और बहा से अपने राज्य में चले गए | फिर शेष नाग जी अपनी यात्रा से लोटे तो महल में आकर देखा तो पीड़ा से बिलख रही थी तब शेष नाग ने पूछा क्या हुआ नागिन ने कहा मुझे राजा प्रताप भानु ने बिना कोई गलती के मारा शेष नाग को यकीन नहीं हुआ | शेष नाग राजा प्रताप भानु को डंसने के लिए राजा के सिंघासन से लिपट गए तभी नौकर ने देखा और मरने के लिए दौड़ा तो राजा ने कहा मारना नहीं बाहर लेजाकर छोड़ दो तो शेष ने सोचा इतना धर्मात्मा राजा एक पराई स्त्री को बिना कोई कारन के नहीं मार सकता | तो शेष नाग न्र राजा से पूछा तो राजा ने पूरी सच्चाई बताई तब शेष नाग ने प्रतिज्ञा की की में अभी जाकर नागिन  के नाक कान काटूगा | 

इधर नागिन शेषनाग के डर से अपना फन पटक -पटक कर अपने प्राण त्याग देती है वही अधूरी प्रतिज्ञा शेषनाग जी ने लक्ष्मण के रूप में नागिन रूपी सूर्पनखा के नाक-कान काट कर इस जन्म में प्रतिज्ञा पूर्ण  की  | 

तो दोस्तों यही कारण आगे चलकर राक्षस राज रावण के कुल का बिनाश  का कारण बना और इस प्रकार सूर्पनखा की प्रतिज्ञा पूर्ण हुई उसी के कारण रावण ने सीता जी का हरण किया और श्री राम जी ने सम्पूर्ण राक्षस वंस का नास किया |   


दोस्तों आपने परिवार में सभी प्यार करो | किसी के मन में आपने प्रति दुवेश न हो | ये कहनी हमें यही सिखाती है की परिवार के एक सदस्य में मन में दुवेश हो तो वह विनाश का कारण  बन सकता है 


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