इंद्र देवता के पुत्र जयंत ने ली भगवान श्री राम की परीक्षा

 

इंद्र देवता के पुत्र जयंत ने ली भगवान श्री राम की परीक्षा

जब भगवान श्री राम बनवास काट रहे थे और पंचवटी में कुटिया बनाकर रह रहे थे एक दिन भगवान श्री राम सीता माता का पुष्पों से श्रृंगार कर रहे थे तो सारे देवता उस मनोहर दृश्य का आनंद उठा रहे


थे और सभी मिलकर भगवान श्री राम की जय जयकार लगा रहे थे तभी वहां पर इंद्र का पुत्र जयंत आया और मन में सोचने लगा कि यह सारे देवता किसकी जय जयकार लगा रहे हैं तब उसने धरती की तरफ देखा यह सारे देवता एक साधारण बनवासी की जय जयकार कर रहे हैं | जयंत बहुत अहंकारी था इसी अहंकार के कारण वह नहीं जानता था कि भगवान श्री राम कौन है वे सभी देवताओं को बताना चाहता कि वह कोई अवतारी पुरुष नहीं है एक साधारण व्यक्ति हैं|

 इस बात को सिद्ध करने के लिए जयंत भगवान श्री राम की परिक्षा लेने के लिए एक कौआ का रूप रख कर  वह जाता है जहा श्री राम और माता सीता है और माता सीता के पैरों में चोंच से चोट मार देता है और वहा से तुरंत चला जाता है किंतु माता सीता ने श्री राम जी से नहीं कहा


क्योंकि माता सीता जगत जननी है और वह सब जानती थी किंतु माता सीता के पैरों से खून निकल आया यह देख श्री राम जी समझ गए और एक सरकंडे का तीर अभिमंत्रित करके ऐसा मारा कि जयंत जहां जहां जाता है वह तीर वह पहुच जाता है जयंत आगे आगे जाता है तीर पीछे – पीछे पहुँच जाता है|  वह एक शब्दभेदी तीर था शब्दभेदी का मतलब ये हे की जिस भी लक्ष को मंत्रो से साधकर तीर मारा जाता है तो वह तीर बिना लक्ष को भेदे वापस नहीं आता चाहे लक्ष फिर कही भी जाये| भगवान श्री राम ने जयंत के पीछे इसे शब्दभेदी तीर को उसके पीछे छोड़ा था

जयंत को पता चला की राम भगवान ने तीर मारा है तो वह उस तीर को आपनी शक्ति से रोकने का प्रयास करता है किन्तु वह उस तीर को नहीं रोक पता और भागने लगया है किन्तु तीर उसका पीछा नहीं छोड़ता | जयंत भागते भागते आपने पिता इंद्र के पास जाता है और सारी बात बता देता है इंद्र जयंत पर बहुत क्रिधित होता है और स्वर्ग से भगा देता है | जयंत भाग- भाग कर थक जाता है किन्तु वह तीर उसका पीछा नहीं छोड़ता | फिर जयंत भगवान ब्रह्म देव के पास जाता है ब्रह्मा ही में कहा तूने ये क्या किया तुझे तो भगवान शिव ही बचा सकते हे क्योंकि भगवान श्री राम के भगवान शिव ही अर्ध्य है उनके अस्त्र को रोकने की क्षमता केवल भगवान शंकर के पास ही है अतः तुझे कोई भी नहीं बचा सकता है |

जयंत भागते-भागते भगवान सदाशिव के पास जाते है वह भगवान शिव से सभी वृत्तान्त कहता है और उसे बचने का आग्रह करता है भगवानशिव जयंत पर बहुत क्रोधीय होते है और कहते है की तू जाया से भाग जा नहीं तो श्री राम के तीर के पहले में ही तुझे मर दूंगा | जयंत वहा से तुरंत भाग जाता है जयंत बुरी तरह से थक जाता है | फिर भागते-भागते उसे नारद जी मिलते है नारद जी ने उस से पूछा की तुम्हारा ये हल किसने किया फिर जयंत सारा हाल नारद जी से कह देते है नारद जी ने कहा – आये दुष्ट तुमे तो आपनी मौत को बुला लिया है अब तो केवल तुझे श्री राम के आलबा कोई और नहीं बचा सकता है जा श्री राम के पैरो में गिर जा सायद वे तुम्हे माफ़ कर दे |

नारद जी के कहेते ही जयंत भगवान श्री राम के पास जाते है और उनके पैरो में गिर जाते है इतने में इंद्र भी वह आ जाते हा और आपने पुत्र गलती की माफ़ी मांगते है


उन्होंने इंद्र से कहा – हे मर्यादा पुरषोतम भगवान राम मेरे पुत्र की मुखता को क्षमा कर दें श्री राम जी कहते है- हे देवेन्द्र में तुम्हारे पुत्र को माफ़ करता हुं किन्तु  मेने जो तीर मारा है वह शब्दभेदी है जो खली नहीं आ सकता इसलिए में जयंत की एक आँख फोड़ देता हाउ और तीर जयंत की एक आँख उस सरकंडे के तीर से फुट जाती है|

दोस्तों इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है की विनाश काले विपरीत बुध्धि

मतलब की जब विनाश आता है तो बुध्दी भी कम करना बंद हो जाती है |

 

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