बर्बरीक एक ही बाण महाभारत का युध्द ख़त्म कर देता
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दोस्तों महाभारत का युध्द हुये कई साल हो गए है | लेकिन आज भी महाभारत के कई योध्द का नाम व्खायत है | जैसे अर्जुन, कर्ण , भीष्म पितामह ,भीम , अभिमनु और भी ऐसे को योध्द थे जिन्होंने महाभारत के युध्द ने अपनी वीरता से अपना नाम अमर कर है |
लेकिन दोस्तो मे आज आपको ऐसे वीर के बारे में बताता हु जो एक ही बाण में महाभारत के सभी युध्द को हरा सकता था अपितु सम्पूर्ण सेना का अंत एक ही बाण में कर सकता था | इस योध्द से तो स्वम भगवान कृष्ण को भी बिचलित कर दिया था | इस योध्द का नाम है बर्बरीक। .....
बर्बरीक भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र था | उसकी माता का नाम मौरवी था | जो जो नरकासुर के सेनापति मौरा की पुत्री थी , बर्बरीक बचपन से ही बहुत शक्तिशाली था | बर्बरीक को युध्द की कला उसकी माँ ने ही शिकाई थी और उसकी माता ने उसे शिकाया था की हमेशा कमजोर का साथ देना | बर्बरीक बहुत बड़ा शिव भक्त था उसने भगवान शंकर की कठोर तप कर के उन्हें प्रसन्न किया और तीन शक्तिशाली अस्त्र मने जिससे वह अजय हो गया वह एक ही बाण में सम्पूर्ण श्रष्टि को नष्ट कर सकता था
जब महाभारत का युध्द शुरु होने बाला था तब बर्बरीक युध्द में हिस्सा लेने के लिए अपनी माता का आशीर्वाद लेने गए तो माता ने एक शर्त रखी की वह कमजोर पक्ष से युध्द में भाग लेना माता की आज्ञा पा कर बर्बरीक युध्द में भाग लेने के लिए कुरुछेत्र की और चल दिया |
बर्बरीक को आते देख भगवान कृष्ण व्याकुल हो गए यदि बर्बरीक कौरव के पक्ष से युध्द किया तो पुरे युध्द का
नक्शा ही बदल जायेगा | ऐसा जान श्री कृष्ण भगवान ने एक ब्राह्मण का रूप रख बर्बरीक का बीच मार्ग में ही रोक लिया और बर्बरीक से अपने रथ में बिठाकर आगे छोड़ने की बिनती की | बर्बरीक ने उन्हें प्रणाम कर अपने रथ में आदर के साथ स्थान दे कर बिठाया | भगवान श्री कृष्ण ने उन से पूछा की आप कहा जा रहे हो इस पर बर्बरीक ने कहा - हे ब्राह्मणदेव के कुरुक्षेत्र में जो भी कमजोर पक्ष का में उनकी तरफ से युद्ध करने जा रहा हु | कृष्ण भगवन ने कहा-किन्तु तुम्हारी तरकश में तो तीन ही बाण है - बर्बरीक ने कहा तीन बाण की तो छोड़ो मेरी तरकश का एक ही बाण युद्ध के लिए काफी है यदि मेने तीनो बाण चला दिए तो सम्पूर्ण संसार नष्ट हो जायेगा | श्री कृष्ण भगवान ने बर्बरीक का उपहास कर उसे एक पेड़ की सारी पत्तियों को भेदने की परीक्षा ली और एक पत्ता अपने पैरो के नीचे छिपा लिया | बर्बरीक ने एक बाण भगवान शिव का ध्यान कर के मारा तो उस पेड़ के सरे पत्ते भेद कर वह बाण भगवान कृष्ण के चारो और घूमने लगा |
तो बर्बरीक ने कहा हे ब्राह्मणदेव एक पत्ता आप के पैरो के नीचे है पैर हटा लीजिये नहीं तो ये बाण आप के पैर को भी भेद देगा | फिर भगवन कृष्ण ने बर्बरीक से कहा
की हे बर्बरीक तुम युद्ध में अवश्य ही विजय पाओगे किन्तु धर्म की स्थापना के लिए तुम अपना शीश मुझे दान में दे दो |
बर्बरीक ब्राह्मणदेव की बात सुनकर चौक गए लेकिन बर्बरीक समझ गए की वे ब्राह्मण नहीं है | बर्बरीक ने कहा की हे ब्राह्मणदेव आप अपना असली रूप मुझे दिखाओ उस के बाद में अपना शीश तुम्हे दान कर दुगा तब श्री कृष्ण अपने असली रूप में आये | बर्बरीक ने उन्हें प्रणाम किया और उन से विनती की की में महाभारत का सम्पूर्ण युद्ध देखना चाहता हु तव भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का शीश धड़ से अलग कर दिया | किन्तु उसके शीश को जिन्दा रखा उस शीश ने महाभारत का सम्पूर्ण युद्ध देखा और श्री कृष्ण ने अर्जुन जो भगवत गीता सुनाई थी उसे भी बर्बरीक ने सुना |
बर्बरीक ने देखी महाभारत युध्द की सच्चाई
जब महाभारत का युद्ध खत्म हो गया तो अर्जुन को महाभारत को अपने प्रदर्शन का घमंड हो गया की उसने बड़े -
बड़े यौद्धा को मार गिराया इस घमंड को भगवान श्री कृष्ण समझ गए थे इसलिए उन्होंने अर्जुन का घमंड तोड़ने के लिए अर्जुन को उसी के रथ में बैठाकर बर्बरीक के पास ले गए भगवान श्री कृष्ण को आते देख बर्बरीक ने उन्हें प्रणाम किया और कहा - हे प्रभु अब आप मुझे मुक्ति दे दो मेरा महाभारत का युध्द देखना विफल रहा मुझे युध्द में कोई वीर नहीं दिखा मुझे केवल सुदर्शन चक्र ही चारो और दिखा |
बर्बरीक के ऐसे वाचन सुन अर्जुन क्रोध में बोले आप मेरा आपमान कर रहे है आपने नहीं देखा की मेने किस प्रकार महावीर कर्ण को मारा किस प्रकार मेने भीष्म पितामह को मारा और किस प्रकार गुरु द्रोणाचार्य को मारा | बर्बरीक ने कहा - नहीं इन्हें तुमने नहीं मारा ये सारे सुदर्शन चक्र से मरे गए थे तुम्हारे तिन तो विफल हो गए थे और तुम्हारे बाणों के आगे सुदर्शन चक्र जाता था उसी से कर्ण मारा गया | सुदर्शन चक्र में ही भीष्मपिता को रथ से निचे गिराया |
इतनी बातें सुन कर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा - एह अर्जुन तुम जरा आपने रथ की और देखों यदि पवन पुत्र तुम्हारे रथ पर विराज मन नहीं होते तो तुम कब के वीर गति को प्राप्त हो जाते | फिर भगवान श्री कृष्ण ने हनुमान जी को आवाज़ लगाई | हनुमान जी रथ से जैसे ही आपने स्वरुप में उतरे वेसे ही रथ चर-चूर हो गया | एस प्रकार अर्जुन का घमंड टुटा | फिर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से मोक्ष की प्राप्ति की |
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