जटायु और सम्पति के पूरे जीवन की कहानी

जटायु और सम्पति के पूरे जीवन की कहानी

दोस्तों आज मैं आपको दो गिध्द भाइयों  की कहानी बताने जा रहा हूं। इन दोनों पक्षियों के नाम थे जटायु और सम्पति, सम्पति बड़ा था और जटायु छोटा था। मैं इन दोनों भाइयों का पूरा विवरण लिख रहा हूं।

रामायण में जटायु और सम्पति का वर्णन मिलता है, इन दोनों ने सीता माता की खोज में अहम भूमिका निभाई थी।


जटायु और सम्पति एक गिद्ध जाति के पक्षी थे। ये दोनों गिद्ध राजा अरुण के पुत्र थे, इनका जन्म ऋषि कश्यप के वंश में हुआ था, ऋषि कश्यप की पत्नी विनता थीं। ऋषि कश्चयप के दो पुत्र हुए गरुण और अरुण | गरुण देव भगवान विष्णु के सेवा में उन के वाहन के रूप में चले गए  | अरुण सूर्य देव के सारथी बने और उनकी सेवा में आए। अरुण देव के इन दो पुत्रों का जन्म हुआ, जटायु और संपति, दोनों ही बहुत शक्तिशाली थे, दोनों की उड़ान बहुत तेज थी, दोनों विंध्याचल पर्वत के आसपास के क्षेत्र में रहते थे और ऋषियों को राक्षसों से बचाते थे। ऋषियों की सेवा करने से ऋषियों ने उन्हें आशीर्वाद में बहुत सी दिव्या शक्ति दी थी |

 इन शक्ति का उन दोनों को अभिमान होने लगा था इस अभिमान के चलते उन्होंने हिमालय में रह रहे ऋषियों से शर्त लगे की हम दोनों सूर्य को छु कर आते है | दोनों भाई जटायु और सम्पाती सूर्य की और उड़ चले उड़ते -उड़ते जब वे दोनों सूर्य के पास पहुंचे तो सूर्य के तेज से जटायु के पंख जलने लगे तो सम्पाती ने आपने छोटे भाई जटायु को आपने पंख से ढाक लिया उसके ऐसा करने से सम्पाती का पूरा शारीर सूर्य की तेज किरण में जल गया | दोनों भाई जमीन की और गिरने लगे जटायु पंचवटी के पास गिरे लेकिन वह स्वस्थ थे | जबकि सम्पाती दक्षिण के समुद्र तट पर गिरे वह पूरी तरह जल गये थे और उनके पंख भी पूरी तरह जल गए थे जिसके कारण वे व्दारा उड़ नहि पाए | और उसी तट पर एक चठ्ठा पर जीवन यापन करने लगे | दोनों भाई अलग -अलग हो गे वे व्दारा नहीं मिले | चन्द्रमा और ऋषि निशाकर ने सम्पाती का इलाज किया किन्तु वे उड़ नहीं पाए और दोनों भाइयों की दिव्या शक्ति सूर्य के तेज में जल गई | 


देवासुर संग्राम में दशरथ और जटायु की मित्रता 

जब देवासुर संग्राम चल रहा था तब राजा दशरथ ने भी देवताओ की और से युध्द में भाग लिया | युध्द्द में रजा दशरथ और शंबरासुर नाम के राक्षस के साथ युध्द कर थे तो जटायु ने रजा दशरथ की बहुत मदद की थी | रजा दशरथ जटायु की युध्द निति और पराक्रम देख कर अत्यंत प्रसन्न हुए और जटायु को आपना मित्र बना लिया | और उन्होंने साथ मिलकर बहुत से असुरो के साथ युध्द किया और उन्हें मर गिराया | 

श्री राम ,माता सीता और लक्ष्मण से जटायु का मिलन 

जब श्री राम पिता के वचन को निभाने के लिय १४ साल का वनवास काट रहे थे | तो आपने वनवास के अंतिम वर्ष में


पंचवटी में जटायु से मिलें और श्री राम नें आपना परिचय दिया | राजा दशरथ की मौत का समाचार सु कर जटायु बहुत दुखी हुए किन्तु श्री राम माता सीता और लक्ष्मण से मिलकर बहुत खुश हुयें | जटायु ने श्री राम को पंचवटी में ही कुटिया  बना कर रहने को कहा श्री राम जी ने जटायु को आपने पिता के सामल मानकर उनकी आज्ञा से पंचवटी में ही कुटिया बनाई और आपने वनवास के बचे दिन पंचवटी में काटने का फासला लिया |

जटायु और  रावण  का युध्द 

जटायु श्री राम को आपने पुत्र और माता सीता को आपनी पुत्र वधु के सामान मानते थे | जब लक्ष्मण में  शूर्पनखा की नका श्री राम जी आज्ञा से कटी तो रावण प्रतिशोध लेने आपने मामा मरिछ के साथ माता सीता का हरण करने आया | इधर मरिछ ने सुवर्ण हिरन का रूप के लिया उसके आकर्षण में माता सीता नें श्री राम से उसक शिकार करने को कहा फिर श्रीं राम हिरण का शिकार करनें उसके पीछे गए | और लक्ष्मण को सीता माता की रक्षा करने को वही छोड़ गये किन्तु जब श्री राम ने हिरण रूपी मारीछ का शिकार किया तो मरिछ ने श्री राम की आवाज में लक्ष्मण जी को आवाज लगाई माता सीता उस आवाज को सुन कर बिचलित हो गई और लक्ष्मण जी को श्री राम के पास जाने के लिए विवश कर दिया | जब लक्ष्मण जी श्री राम जी के पास गए तो रावण धोके से सीता माता का हरण कर आपने पुष्पक विमान में ले जाता है उसे जटायु देख लेता है और तुरंत तेजी से उड़ कर रावण के विमान का पीछा करने लगता है और वहा पहुँच कर आपने पंखो से रावण पर हमला कर देता है | जटायु और रावण के बिच बहुत भीषण युध्द होता है | जटायु रावण को आपने पुरे बल से प्रहार करता है और रावण को घायल कर देता है अंत में रावण क्रोध में आ जाता  और जटायु के पंख पर आपनी चंद्रहस्य खडग से प्रहार करा है जिससे जटायु का एक पंख कट जाता है और जटायु धरती पर गिर जाते है | उन के पंख कट जाने के कारन उन्हें बहुत  पीड़ा  होती है | वह पीड़ा को सहन कर श्री राम का इंतजार करते है | 


पक्षी राज जटायु की मृत्यु  

इधर श्री राम और लक्ष्मण लोट कर आये सीता माता को न पाकर बहुत व्याकुल हो गई | वह सीता जी की खोज  करते हुए जंगल में भटक रहे थे तभी उन्हें मार्ग में घायल जटायु मिलते है जटायु जी मौत के कगार पर आपनी अंतिम साँस गिन रहे थे जब जटायु श्री राम से मिले तो उन्होंनें सारा हाल कहा और बताया की रावण नाम के एक राक्षस ने सीता माता का हरण किया है और वह दक्षिण दिशा की और गया है |

पितातुल्य जटायु की ऐसी गति देख श्री राम जी की आँखों से आसुओ की धारा निकल पड़ी और उन्होंने जटायु से कहा की में तुम्हारे सारे घाव ठीक कर के तुम्हे पूर्ण रूप से स्वस्थ कर दूंगा | ऐसी बात सुन जटायु ने श्री राम से कहा की प्रभु आप के नाम मात्र से मनुष्य को मुक्ति मिल जाती है और मेरे सौभाग्य की मुझे आपकी गोद में मरने का मौका मिला में ये मौका नहीं जाने दूंगा आप मुझे आज्ञा दीजियें और आप सीता की खोज कीजिये और रावण को मृत्यु दंड दीजिये | इतना कह कर जटायु ने आपने प्राण त्याग दिए | श्री राम नें जटायु का आपने पिता के सामान उनका अंतिम संस्कार किया और पिंडदान किया |  श्री राम फिर आगे माता सीता की खोज में चले गयें  | 

सम्पति नें कैसे की श्री राम की मदद 

जब राम और वानर सुग्रीव की मित्रता हो गई थी सुग्रीव ने सभी दिशाओं में अपनी एक एक टुकड़ी माता सीता की खीज में भेजी और  दक्षिण दिशा में जामवंत,अंगद हनुमान जी और एक वानर सेना की एक टुकड़ी भेजिए वे टुकड़ी ढूंढते ढूंढते दक्षिणी समुद्र तट पर पहुंची और थक-हार कर अपने प्राण गवा ने का सभी ने निर्णय लिया तब उन्हें एक आवाज और  उन्होंने देखा कि एक विशालकाय पक्षी एक चट्टान पर बैठा है वह सम्पति था और वह उन्हें खाना चाहता था| जब जामवंत ने उन्हें सारा हाल सुनाया और जटायु की मृत्यु का समाचार सम्पति को दिया तो अपने भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर सम्पति अत्यंत दुखी हुआ वह रावण से बदला लेना चाहता था किंतु उसके पंख सूर्य के प्रकाश से जल गए थे इसीलिए वे असहाय था फिर उसने कहा की वो एक शाम बैठा था तो उसने आकाश मार्ग से एक विमान आकाश  से जाते हुए देखा और एक स्त्रीआपनी मदद के लिय राम को पुकार रही थी और उस विमान में  रावण भी था शायद वही सीता माता थी | 

सम्पति की बात सुन कर सभी वानर सेना में एक उमीद की किरण जग उठी थी | सम्पति ने और कहा की गिध्द की नजर बहुत दूर कट देख सकती है में माता सीता को अभी देख प रहा  हूँ वह लंकापति रावण की अशोक वाटिका में एक पेड के निचे बैठी है और चारो और से रक्षिसी सेना उन्हें घेरे हुए है | सम्पति ने वानर सेना को लंका जाने के लिए प्रेरित किया | जिससे बाद में हनुमान जी लंका गए और सीता माता को खोज की | ]

तो दोस्तों आपने देखा की किस प्रकार  दोनों  गिध्द राज पक्षी भाइयों ने  श्री राम की माता सीता की खोज में एहम भूमिका निभाई थी यदि दोनों भाई नहीं होते तो शायद सीता माता की खोज असंभव थी | हम दूसरो की सेवा करते है तो हमें निःस्वार्थ करनी चाहियें | और यदि हमारे पास शक्ति है तो उसका हमें अहंकार नहीं करना चाहिए नहीं तो वह हमें विनाश की तरफ ही ले जायगा | और दोस्तों जटायु और सम्पति तो पक्षी थे हम तो  मनुष्य है जब तो किसी की सेवा सकते है तो क्या हम नहीं कर सकते | 


अंग्रेजी के लिए यहां क्लिक करें -  https://religiousstories1.blogspot.com/2022/03/story-of-jatayu-and-sampatis-entire-life.html

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