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इंद्र देवता के पुत्र जयंत ने ली भगवान श्री राम की परीक्षा

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  इंद्र देवता के पुत्र जयंत ने ली भगवान श्री राम की परीक्षा जब भगवान श्री राम बनवास काट रहे थे और पंचवटी में कुटिया बनाकर रह रहे थे एक दिन भगवान श्री राम सीता माता का पुष्पों से श्रृंगार कर रहे थे तो सारे देवता उस मनोहर दृश्य का आनंद उठा रहे थे और सभी मिलकर भगवान श्री राम की जय जयकार लगा रहे थे तभी वहां पर इंद्र का पुत्र जयंत आया और मन में सोचने लगा कि यह सारे देवता किसकी जय जयकार लगा रहे हैं तब उसने धरती की तरफ देखा यह सारे देवता एक साधारण बनवासी की जय जयकार कर रहे हैं | जयंत बहुत अहंकारी था इसी अहंकार के कारण वह नहीं जानता था कि भगवान श्री राम कौन है वे सभी देवताओं को बताना चाहता कि वह कोई अवतारी पुरुष नहीं है एक साधारण व्यक्ति हैं|   इस बात को सिद्ध करने के लिए जयंत भगवान श्री राम की परिक्षा लेने के लिए एक कौआ का रूप रख कर   वह जाता है जहा श्री राम और माता सीता है और माता सीता के पैरों में चोंच से चोट मार देता है और वहा से तुरंत चला जाता है किंतु माता सीता ने श्री राम जी से नहीं कहा क्योंकि माता सीता जगत जननी है और वह सब जानती थी किंतु माता सीता के पैरों से खून नि...

दानवीर कर्ण की सम्पूर्ण जीवन की कथा

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  दानवीर कर्ण की सम्पूर्ण जीवन की कथा   कर्ण कुंती का पहला पुत्र था | कर्ण का कुंती के विवाह के पूर्व ही जन्म हो गया था | लोग-लाज के कारण कुंती ने कर्ण को एक संदूक में रख कर गंगा नदी में बहा दिया था | कर्ण के जन्म की कथा बहुत ही विचित्र कथा है आइये जानते है- कुंती के जन्म की कथा यदुवंश के प्रसिध्द राजा शूरसेन थे जो भगवान श्री कृष्ण के पितामह(दादा) थे शूरसेन के फुफेरे भाई कुंतीभोज की कोई संतान नहीं थी, इसलिए शूरसेन ने कुंतीभोज को वचन दिया की वह आपनी पहली संतान को उन्हें दे देंगे इसलिए शूरसेन ने कुंती के जन्म के बाद कुंती को कुंतीभोज को दे दिया| कर्ण के जन्म की कथा एक बार राजा कुंतीभोज के यहाँ दुर्वासा ऋषि पधारे थे कुंती ने उनका बड़ा सेवा-सत्कार किया वह जब तक वहा रहे कुंती ने उनकी बहुत सेवा की कुंती की इस नि:स्वार्थ सेवा से ऋषि दुर्वासा बहुत ही खुश हुए और उन्होंने प्रसन्न होकर कुंती को वरदान स्वरुप एक मंत्र दिता और कहा की तुम जिस भी देवता का आवाहन करोगी वह देवता तुरंत तुम्हारे पास आ जायगें और आपने अंश से एक तेजस्वी पुत्र तुम्हे देंगे| जब दुर्वासा ऋषि वहा से चले गये त...

संत शिरोमणि रविदास जी का जीवन परिचय( part 1 )

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 संत रविदास जी का सम्पूर्ण  जीवन परिचय - संत शिरोमणि रविदास जी भारत के एक महान संतो में से एक थे |  संत शिरोमणि रविदास जी एक मात्र संत थे जिन्हें संत शिरोमणि की उपाधि प्राप्त थी | न ही उन से पहले न ही उन के बाद यह उपाधि किसी को मिली |  उन्होंने बहुत से धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया और महान पुरुषो  की पुस्तको का  भी अध्ययन किया | संत शिरोमणि रविदास जी  को हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु के रुप में माना जाता है की मीरा के गुरु संत शिरोमणि रविदास जी  थे |   संत शिरोमणि रविदास जी  के जन्म के बारे में बहुत सी विभिन्नता है | कोई  संत शिरोमणि रविदास जी का  जन्म को  1376 ईस्वी लगभग है ,तो कोई 1433 के लगभग बताता है उन का जन्म माघ पूर्णिमा  को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोवर्धन  गांव में हुआ था। उनकी माँ  का नाम कर्मा देवी उन का एक नाम कलसा भी है  तथा पिता का नाम संतोख दास इन्हें रग्घु नाम से भी जाना जाता है  था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लो...

शूर्पणखा ने लिया रावण से बदला (लक्ष्मण शूर्पणखा का सम्बन्ध )

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 शूर्पणखा ने लिया रावण से बदला (लक्ष्मण शूर्पणखा का सम्बन्ध ) रामायण के मुताबिक शूर्पणखा रावण की सग्गी बहिन थी | शूर्पणखा के पति का नाम  "विद्युतजिव्ह" था |विद्युतजिव्ह कालकेय नाम के राजा का सेना पति था |   बार की बात है जब रावण ने विश्व विजय के लिया निकला तो कालकेय के साथ उसका युद्ध हुआ तो शूर्पणखा के पति के श भी युद्ध हुआ| युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया | तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया की मेरे ही कारन तेरे समस्त कुल का नाश होगा |  शूर्पणखा प्रतिशोध की भावना में जल रही थी |  कुछ समय बाद  शूर्पणखा को पता चला की भगवान विष्णु ने राम के रूप में धरती पर अवतार  लिया है  और वह चौदह साल के लिया वनवास भोग रहे है| और वह खर दूषण के राज्य पंचवटी में ही कुटिया बना कर रह रहे है | उस ने सिचा की यही सबसे अच्छ मौका है रावण दे बदला लेने के लिया | और वह पंचवटी की और वायु मार्ग से चल दी | वह पंचवटी के पास पहुंची और उसने देखा की एक सुन्दर पुरुष एक सुन्दर कुटिया के पास वृक्ष के निचे ध्यान मग्न था| उसके तेज को देख कर वह समझ गई की यही श्री...

समुद्र मंथन (सागर मंथन ) की सम्पूर्ण कथा

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 समुद्र मंथन (सागर मंथन ) की सम्पूर्ण कथा    एक बार की बात है ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलास जा रहे थे | रास्ते में उन्हें इंद्र  देव मिले | इंद्र  देव ने ऋषि दुर्वासा को श्रद्धा पूर्ण प्रणाम किया ऋषि दुर्वासा ने आशीर्वाद देकर भगवान विष्णु का पारिजात पुष्प प्रदान किया | इंद्र  को आपने इन्द्रासन का उस समय बहुत घमण्ड था तो उसने उस पुष्प को लेकर ऐरावत हाथी  के मस्तक पर रख दिया | इंद्र  के ऐसा करते ही ऐरावत हाथी में भगवान विष्णु के सामान तेज उत्पन हो गया और वह इंद्र  का त्याग कर वन में चला गया | दुर्वासा ऋषि ने इंद्र  को पुष्प दिया लेकिन इंद्र  ने अपने घमण्ड के वश उनका अपमान की दुर्वासा ऋषि को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने इंद्र को श्री (लक्ष्मी) हिन का श्राप दे दिया | दुर्वासा ऋषि के श्राप फलस्वरूप  लक्ष्मी माता उसी समय अद्रश्य हो गई | लक्ष्मी माता के अद्रश्य होते ही इन्द्र व सभी देवगण  श्री हिन व बल हिन हो गे | उनको बल हिन जानकर देत्यो ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और स्वर्ग पर आपना अधिकार कर लिया|   तब इन्द्...