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 पति पत्नी की कॉमेडी लड़ाई  पति पत्नी की शादी की सालग्रह पर पति को बड़े प्यार से बुलाता है  पति - आज  मेरी और  मेरी पत्नी की शादी को १ शाल हो गये है | तो आज में आपनी पत्नी से लड़ाई नहीं करूँगा  पति -     जनु  कहा हो  जनु ........(प्यार से ) पत्नी -     आई ...आई ..  सॉरी वे में  तुम्हारे पेंट पर रफू कर रही थी |( हस्ते हुए ) पति -     क्यों मेरी पेंट तो सभी ठीक हिया ( इतराते हुए ) पत्नी -      वो क्या है न हमें तो ठंडी प्रेस करते है न बिजली बचने के चक्कर में .... पति -      हाँ ........ पत्नी -     लाईट गोल थी तो में परस कर रही थी ...... फिर में प्रेस पेंट पर रख कर कम करने लगी तभी लाईट आ गई                और तुम्हारा पेंट जल गया  पति -     ( गुस्से वाली हसी से ) सो कियुत ........ हमें दुसरो से आगे से मिलना है पीछे से नहीं जल जाने दो  पत्नी -      तुम प्यार करते हो मुझे  पति -    ...

बर्बरीक एक ही बाण महाभारत का युध्द ख़त्म कर देता

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 दोस्तों स्वागत है हमारे नये लेख में --- दोस्तों महाभारत का युध्द  हुये कई साल हो गए है | लेकिन आज भी महाभारत के कई योध्द  का नाम व्खायत  है | जैसे अर्जुन, कर्ण , भीष्म पितामह ,भीम , अभिमनु और भी ऐसे को योध्द  थे  जिन्होंने महाभारत के युध्द ने अपनी वीरता से अपना नाम अमर कर है |  लेकिन  दोस्तो मे आज आपको ऐसे वीर के बारे में बताता हु जो एक ही बाण में महाभारत के सभी युध्द को हरा सकता था अपितु सम्पूर्ण सेना का अंत एक ही बाण में कर सकता था  | इस योध्द  से तो स्वम भगवान कृष्ण को भी बिचलित कर दिया था | इस योध्द  का नाम है बर्बरीक।  .....  बर्बरीक भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र था | उसकी माता का नाम  मौरवी  था | जो   जो नरकासुर के सेनापति मौरा की पुत्री थी , बर्बरीक बचपन से ही बहुत शक्तिशाली था | बर्बरीक को युध्द की कला उसकी  माँ ने ही शिकाई थी और उसकी माता ने उसे शिकाया था की हमेशा कमजोर का साथ देना | बर्बरीक बहुत बड़ा शिव भक्त था उसने भगवान शंकर की कठोर तप कर के उन्हें प्रसन्न किया और तीन शक्तिशाली अस्त...

जटायु और सम्पति के पूरे जीवन की कहानी

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जटायु और सम्पति के पूरे जीवन की कहानी दोस्तों आज मैं आपको दो गिध्द भाइयों  की कहानी बताने जा रहा हूं। इन दोनों पक्षियों के नाम थे जटायु और सम्पति, सम्पति बड़ा था और जटायु छोटा था। मैं इन दोनों भाइयों का पूरा विवरण लिख रहा हूं। रामायण में जटायु और सम्पति का वर्णन मिलता है, इन दोनों ने सीता माता की खोज में अहम भूमिका निभाई थी। जटायु और सम्पति एक गिद्ध जाति के पक्षी थे। ये दोनों गिद्ध राजा अरुण के पुत्र थे, इनका जन्म ऋषि कश्यप के वंश में हुआ था, ऋषि कश्यप की पत्नी विनता थीं। ऋषि कश्चयप के दो पुत्र हुए गरुण और अरुण | गरुण देव भगवान विष्णु के सेवा में उन के वाहन के रूप में चले गए  | अरुण सूर्य देव के सारथी बने और उनकी सेवा में आए। अरुण देव के इन दो पुत्रों का जन्म हुआ, जटायु और संपति, दोनों ही बहुत शक्तिशाली थे, दोनों की उड़ान बहुत तेज थी, दोनों विंध्याचल पर्वत के आसपास के क्षेत्र में रहते थे और ऋषियों को राक्षसों से बचाते थे। ऋषियों की सेवा करने से ऋषियों ने उन्हें आशीर्वाद में बहुत सी दिव्या शक्ति दी थी |  इन शक्ति का उन दोनों को अभिमान होने लगा था इस अभिमान के चलते उन्...

शानि देव और माता लक्ष्मी की कथा

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 दोस्तों आज में आपके लिए बहुत विशेष कहानी लेकर आया हूँ | इसे एक बार जरुर पुरे पढ़े क्योंकि इस में आप को माता लक्ष्मी और शानि देव की विशेष महिमा के बारे में पता चलेंगा | एक बार शानि देव और माता लक्ष्मी का आपस में विवाद चल रहा था की कौन सबसे अच्छा है एस पर विवाद इतना ज्यादा हो गया की दोद्नों लड़ते-लड़ते ब्रह्मा जी के पास पहुँच गये और कहा की - हे ब्रह्मा जी आप बताएं की हम दोद्नों में दे सबसे अच्छा कोन है एस पर ब्रह्मा जी बोले की आप भगवान शंकर के पास जाये वे आपके विवाद का निराकरण कर देंगे |  फिर शानि देव और माता लक्ष्मी  दोनों  भगवान शंकर जी के पास पहुंचे और बोलते है - हे प्रभु हम दोनों में से कौन श्रेष्ट और अच्छा है  इस पर भगवान शंकर जी ने जबाब दिया की - हे शानि देव , हे लक्ष्मी जी आप दोनों भगवान विष्णु के पास जाएँ वे ही इसका उत्तर दे सकते है |  दोनों भगवान विष्णु के पास जाते है | वहां भगवान विष्णु शेष नाग की शैया पर विराजमान थे | लक्ष्मी जी भगवान विष्णु से बोलीं -हे प्रभु हम दोनों में से सबसे अच्छा कौन है इस पर विष्णु जी ने मन में सोचा की यदि देवी लक्ष्मी के पक्...

महाशिवरात्रि की कथा ! story of mahashivratri

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महाशिवरात्रि की कथा    दोस्तों आज में आपके लिय भगवान शंकर की एक विशेष कथा लेकर आये है जिसे महाशिवरात्रि कहते है  दोस्तों शिवरात्रि के बारे में आप क्या ? जानते है पुराणिक कथाओ के आनुसार शिवरात्रि पर भगवान शिव का विवाह हुआ था और ये उनकी पहली रात थी जिसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है शिवरात्रि हिन्दू पंचांग आनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है | दोस्तों महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए शिव भक्तों के लिए इसका विशेष महत्त्व है | महाशिवरात्रि में भगवान शिव की आराधना करने से सारे कष्ट दूर हो जाते है | शिवरात्रि का पूजन करने के बाद कथा अवश्य पढना व सुनना चाहिए | तो दोस्तों में आपको महाशिवरात्रि कि९ पवन कथा बताता हूँ | आप पूर्ण श्रद्धा से पढ़े ,आशा हे मेरी ये कथा पढ़ कर आपकी मनोकामना पूर्ण हो  चित्रभानु नाम का एक भील था जो शिकार कर के आपने परिवार का भारण-पोषण करता था | वह बहुत ही गरीब था उसे कभी शिकार मिलता तो कभी नहीं | जब उसे शिकार नहीं मिलता तो वह एक साहूकार से कर्जा ले लेता था | धीरे-धीरे उस पर बहुत कर्जा ...

इंद्र देवता के पुत्र जयंत ने ली भगवान श्री राम की परीक्षा

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  इंद्र देवता के पुत्र जयंत ने ली भगवान श्री राम की परीक्षा जब भगवान श्री राम बनवास काट रहे थे और पंचवटी में कुटिया बनाकर रह रहे थे एक दिन भगवान श्री राम सीता माता का पुष्पों से श्रृंगार कर रहे थे तो सारे देवता उस मनोहर दृश्य का आनंद उठा रहे थे और सभी मिलकर भगवान श्री राम की जय जयकार लगा रहे थे तभी वहां पर इंद्र का पुत्र जयंत आया और मन में सोचने लगा कि यह सारे देवता किसकी जय जयकार लगा रहे हैं तब उसने धरती की तरफ देखा यह सारे देवता एक साधारण बनवासी की जय जयकार कर रहे हैं | जयंत बहुत अहंकारी था इसी अहंकार के कारण वह नहीं जानता था कि भगवान श्री राम कौन है वे सभी देवताओं को बताना चाहता कि वह कोई अवतारी पुरुष नहीं है एक साधारण व्यक्ति हैं|   इस बात को सिद्ध करने के लिए जयंत भगवान श्री राम की परिक्षा लेने के लिए एक कौआ का रूप रख कर   वह जाता है जहा श्री राम और माता सीता है और माता सीता के पैरों में चोंच से चोट मार देता है और वहा से तुरंत चला जाता है किंतु माता सीता ने श्री राम जी से नहीं कहा क्योंकि माता सीता जगत जननी है और वह सब जानती थी किंतु माता सीता के पैरों से खून नि...

दानवीर कर्ण की सम्पूर्ण जीवन की कथा

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  दानवीर कर्ण की सम्पूर्ण जीवन की कथा   कर्ण कुंती का पहला पुत्र था | कर्ण का कुंती के विवाह के पूर्व ही जन्म हो गया था | लोग-लाज के कारण कुंती ने कर्ण को एक संदूक में रख कर गंगा नदी में बहा दिया था | कर्ण के जन्म की कथा बहुत ही विचित्र कथा है आइये जानते है- कुंती के जन्म की कथा यदुवंश के प्रसिध्द राजा शूरसेन थे जो भगवान श्री कृष्ण के पितामह(दादा) थे शूरसेन के फुफेरे भाई कुंतीभोज की कोई संतान नहीं थी, इसलिए शूरसेन ने कुंतीभोज को वचन दिया की वह आपनी पहली संतान को उन्हें दे देंगे इसलिए शूरसेन ने कुंती के जन्म के बाद कुंती को कुंतीभोज को दे दिया| कर्ण के जन्म की कथा एक बार राजा कुंतीभोज के यहाँ दुर्वासा ऋषि पधारे थे कुंती ने उनका बड़ा सेवा-सत्कार किया वह जब तक वहा रहे कुंती ने उनकी बहुत सेवा की कुंती की इस नि:स्वार्थ सेवा से ऋषि दुर्वासा बहुत ही खुश हुए और उन्होंने प्रसन्न होकर कुंती को वरदान स्वरुप एक मंत्र दिता और कहा की तुम जिस भी देवता का आवाहन करोगी वह देवता तुरंत तुम्हारे पास आ जायगें और आपने अंश से एक तेजस्वी पुत्र तुम्हे देंगे| जब दुर्वासा ऋषि वहा से चले गये त...